
भगवान शिव: संहार और सृजन के देवता
- भगवान शिव हिंदू धर्म के प्रमुख त्रिदेवों में से एक हैं, जिन्हें संहार के देवता के रूप में जाना जाता है। परंतु वे केवल संहार नहीं करते, बल्कि सृजन और पुनर्जन्म का भी प्रतीक हैं। उनकी पूजा दुनिया भर में करोड़ों श्रद्धालु करते हैं, और वे तप, ध्यान, और वैराग्य के प्रतीक माने जाते हैं।
शिव जी का स्वरूप
भगवान शिव का रूप अत्यंत रहस्यमयी और आकर्षक है। वे जटाओं से सुशोभित, गले में नागराज वासुकी और रुद्राक्ष की माला धारण किए रहते हैं। उनके मस्तक पर तीसरी आंख है, जो ज्ञान और शक्ति का प्रतीक है। उनके शरीर पर भस्म लगी होती है, जो वैराग्य और संसार से विरक्ति को दर्शाती है।
पर्वतराज की पुत्री पार्वती के पति
शिव जी का विवाह माता पार्वती से हुआ था, जो शक्ति का अवतार मानी जाती हैं। शिव-पार्वती की जोड़ी आदर्श गृहस्थ जीवन का प्रतीक है। उनके पुत्र गणेश और कार्तिकेय भी हिंदू धर्म में अत्यंत पूजनीय हैं।
शिव का तांडव
शिव जी का तांडव नृत्य ब्रह्मांड की ऊर्जा को दर्शाता है। यह नृत्य सृष्टि, स्थिति और संहार – तीनों अवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करता है। उनका यह रूप नटराज कहलाता है।
महाशिवरात्रि और पूजा
महाशिवरात्रि भगवान शिव की आराधना का प्रमुख पर्व है। इस दिन शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र आदि अर्पित कर भक्त व्रत रखते हैं और रात्रि भर जागरण करते हैं। शिव के नाम का जाप—“ॐ नमः शिवाय”—भक्तों के मन को शांति और शक्ति प्रदान करता है।
आध्यात्मिक महत्व
भगवान शिव ध्यान और योग के प्रथम गुरु (आदि योगी) माने जाते हैं। उन्होंने मानव को ध्यान और साधना का मार्ग दिखाया, जिससे आत्म-साक्षात्कार और मुक्ति की प्राप्ति हो सकती है।
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निष्कर्ष
भगवान शिव केवल एक देवता नहीं, बल्कि एक सम्पूर्ण दर्शन हैं। वे हमारे भीतर की नकारात्मकता का संहार कर सकारात्मकता और चेतना की स्थापना करते हैं। जो भी उनके मार्ग पर चलता है, उसे शांति, बल और मोक्ष की प्राप्ति निश्चित रूप से होती है।